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सिनेमा में सितारा शोहरत पर विषय वस्तु भारी / 12 जनवरी 2019

सिने सिंहावलोकन 2018   सिनेमा में सितारा शोहरत पर विषय वस्तु भारी पड़ने का साल        ·     विनोद नागर गत वर्ष 2017 का सिने सिंहावलोकन करते हुए नाचीज़ ने उसे कथानक और नवाचार की अहमियत स्वीकारते सिनेमा का साल निरुपित किया था. अब 2018 का सालाना लेखा जोखा तैयार करते हुए घूम फिरकर वही बिंदु उभरकर सामने आ रहे हैं जिनकी तस्दीक पिछले बारह महीनो ने रुपहले परदे पर की है. मसलन फिल्मों का कंटेंट अब न केवल स्टारडम पर भारी पड़ने लगा है; बल्कि युवा फिल्मकारों की नई पीढ़ी का नवाचार दर्शकों को रास आने लगा है. इसे देखते हुए आशंका हो चली है कि कहीं बदलाव की इस बयार में सितारा संस्कृति के ही दिन न लद जाएँ. कहना मुश्किल है कि सितारों से मोहभंग का यह टूटता मिथक क्या फिल्मों के ग्लैमर का रुख चेहरे मोहरे के बजाय अभिनय सामर्थ्य की बहुआयामी कूव्वत की ओर मोड़ सकता है.   हाथ कंगन को आरसी क्या.. 2018 में बॉक्स ऑफिस पर ‘बधाई हो’, ‘स्त्री’, ‘अंधाधुन’ और ‘राज़ी’ जैसी साधारण बजट की हिट फिल्मों की सफलता की कहानियाँ आत्ममुग्ध स्थापित सितारों को आइना दिखाने...

पत्रकारिता में धार के ध्वजधर / 29 मई 2012

पत्रकारिता में धार के ध्वजधर * विनोद नागर      पिछले साल के आखिरी दिन धार में जिला पत्रकार संघ द्वारा आयोजित “शब्द समागम -2011” में सम्मिलित होने का अवसर मिला. इस गरिमामय समारोह में पहुंचकर बहुत अच्छा लगा. अपनी कलम की धार से देश-दुनिया में “धार” को धारदार बनानेवाले ध्वजधरों को सम्मानित कर धार जिला पत्रकार संघ ने अपनी गरिमा और प्रतिष्ठा को नया आयाम दिया है.         दरअसल, राजा भोज की ऐतिहासिक धारानगरी में मीडिया के असल ध्वजधर तो दिवंगत राजेन्द्र माथुर, कृष्णलाल शर्मा और अरविन्द काशिव से लेकर महेश पांडे, सुरेश तिवारी, सोनाने बन्धु, सुरेन्द्र व्यास, सुभाष जैन, रमण रावल, प्रकाश हिन्दुस्तानी, हेमंत पाल, ऋषि पांडे, प्रवीण शर्मा, जैसे प्रखर पत्रकार रहे हैं, जिनके प्रेरणादायक व्यक्तित्व-कृतित्व आज भी प्रासंगिक हैं. खुशी है कि इस गौरवशाली परंपरा को आगे जारी रखनेवालों की फेहरिस्त में छोटू शास्त्री, सचिन देव, हेमंत शर्मा, सुनील सचान, प्रेमविजय पाटिल, सुनील शर्मा आदि कई नाम जुड़ते जा रहे हैं.   निजी तौर पर धार का मेरे जीवन में विशेष महत्व रहा है...

हिन्दुस्तानी सिनेमा का शानदार शतक / 4 मई 2012

हिन्दुस्तानी सिनेमा का शानदार शतक * विनोद नागर (फिल्म समीक्षक) भारत में सिनेमा के सौ साल पूरे होने के सिलसिले में एनडीटीवी पर प्राइम टाइम में जाने-माने फिल्म समीक्षकों/फिल्मकारों के साथ लाइव परिचर्चा में एक वरिष्ठ समीक्षक की उस टिपण्णी ने मन को झकझोर दिया जिसमे हालिया बहुचर्चित फिल्म ' विकी डोनर को भारतीय सिनेमा का भविष्य बताया गया..!   क्या वाकई विकी डोनर , कहानी या पानसिंह तोमर जैसी किफायती फिल्में साधन संपन्न भारतीय सिनेमा के आने वाले कल की दिशा निर्धारित करेंगी ?... या दर्शकों की नई पीढ़ी के बदलते रुझान की आहट है ये... ? बहरहाल विकी डोनर का एक डायलाग यहाँ बड़ा मौजू लग रहा है... ” नौटंकी तो हम इंडियन्स के जींस में है... ”| बिलकुल ठीक फ़रमाया..तभी तो सौ बरस से सिनेमा हमारे जीवन में मनोरंजन का रस घोलने वाले सरल साधन के रूप में रचा-बसा हुआ है पीढ़ी दर पीढ़ी... | किशोरावस्था में सिनेमा के प्रति अगाध लगाव ने ही नाचीज़ को   सत्तर के दशक में उज्जैन में दैनिक अवंतिका से फिल्म समीक्षक के रूप में एक पहचान दिलाई जो ब-रास्ता नईदुनिया , माधुरी , मायापुरी , रविवार , सरिता-मुक्ता आद...