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अटपटे किस्से को चटपटी कहानी में बदलने की फूहड़ कोशिश ‘दे दे प्यार दे’ / 19 मई 2019

अटपटे किस्से को चटपटी कहानी में बदलने की फूहड़ कोशिश ‘दे दे प्यार दे’ •विनोद नागर इस शुक्रवार प्रदर्शित अजय देवगण की रोमकॉम (रोमांटिक कॉमेडी फिल्म) ‘दे दे प्यार दे’ भी फिल्...

ढूंढें से भी न मिले सच्चे स्टूडेंट ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2’ में / 12 मई 2019

सिने विमर्श        ढूंढें से भी न मिले सच्चे स्टूडेंट ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2’ में     ·         विनोद नागर सत्तर के दशक की कई हिन्दी फिल्मों में छात्र जीवन का वास्तविक चित्रण उभरकर सामने आया था. मेरे अपने, इम्तिहान, आन्दोलन, जवानी दीवानी, अंखियों के झरोखों से, बुलंदी जैसी फिल्मों से    आज भी लोग अपने छात्र जीवन को कनेक्ट करते हैं. कालान्तर में जो जीता वही सिकंदर, कुछ कुछ होता है, दिल चाहता है, रंग दे बसंती, युवा, थ्री इडियट्स, मैं हूँ ना, रॉक ऑन, वेक अप सिड, फुकरे, फ़ालतू, यारियां, इश्क विश्क सरीखी फिल्मों ने सिनेमा के परदे पर स्टूडेंट लाइफ की बदलती तस्वीर पेश की. इनमे से कुछ फिल्मों को उनके बेहतर कथानक और सामाजिक सरोकारों से सीधे जुड़ाव के चलते व्यापक सराहना भी मिली और अवार्ड भी.                 2012 में करण जौहर ने अपने बैनर धर्मा के लिये पहली बार ऐसी फिल्म निर्देशित की जिसमे उनके प्रिय शाहरुख़ खान नहीं थे. स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर ने वरुण धवन, आल...

आतंकी साजिश टटोलती 'ब्लैंक' और परीक्षा को ठेंगा दिखाते 'सेटर्स'/ 5 मई 2019

आतंकी साज़िश टटोलती ‘ब्लैंक’ और परीक्षा को ठेंगा दिखाते ‘सेटर्स’ • विनोद नागर भारत में आतंकवाद से जुड़ी घटनाएँ भले ही न थमी हों पर पर इस विषय से जुड़ी फिल्में अब अपना आकर्ष...