सिनेमा में सितारा शोहरत पर विषय वस्तु भारी / 12 जनवरी 2019

सिने सिंहावलोकन 2018  
सिनेमा में सितारा शोहरत पर विषय वस्तु भारी पड़ने का साल 
      ·   विनोद नागर
गत वर्ष 2017 का सिने सिंहावलोकन करते हुए नाचीज़ ने उसे कथानक और नवाचार की अहमियत स्वीकारते सिनेमा का साल निरुपित किया था. अब 2018 का सालाना लेखा जोखा तैयार करते हुए घूम फिरकर वही बिंदु उभरकर सामने आ रहे हैं जिनकी तस्दीक पिछले बारह महीनो ने रुपहले परदे पर की है. मसलन फिल्मों का कंटेंट अब न केवल स्टारडम पर भारी पड़ने लगा है; बल्कि युवा फिल्मकारों की नई पीढ़ी का नवाचार दर्शकों को रास आने लगा है. इसे देखते हुए आशंका हो चली है कि कहीं बदलाव की इस बयार में सितारा संस्कृति के ही दिन न लद जाएँ. कहना मुश्किल है कि सितारों से मोहभंग का यह टूटता मिथक क्या फिल्मों के ग्लैमर का रुख चेहरे मोहरे के बजाय अभिनय सामर्थ्य की बहुआयामी कूव्वत की ओर मोड़ सकता है.  
हाथ कंगन को आरसी क्या.. 2018 में बॉक्स ऑफिस पर ‘बधाई हो’, ‘स्त्री’, ‘अंधाधुन’ और ‘राज़ी’ जैसी साधारण बजट की हिट फिल्मों की सफलता की कहानियाँ आत्ममुग्ध स्थापित सितारों को आइना दिखाने वाली हैं. ‘रेस-3’, ‘ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान’ और ‘ज़ीरो’ के बहाने क्या सलमान.. क्या आमिर.. क्या शाहरुख़.. सभी खान सितारों की फिल्मों को 2018 में जो करारी चपत लगी है उसकी झन्नाट का असर दिमाग को ठिकाने पर लाने वाला हो सकता है. बड़े बजट और महँगी तकनीक के चस्के का सारा नशा एक झटके में हिरन हो गया. सुना है सलमान ने इससे सीख लेते हुए अपनी आगामी फिल्म ‘भारत’ का बजट सीमा में रखने की नसीहत निर्माताओं को दी है.   
साल की शुरुआत में करणी सेना समेत कुछ संगठनो के विरोध के चलते मध्यप्रदेश में संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ को दर्शक रिलीज़ के कई हफ़्तों तक नही देख पाए और जब फिल्म राज्य में प्रदर्शित हुई तब तक उसका क्रेज़ ख़त्म हो चुका था. मध्य प्रदेश में दर्शकों के साथ दूसरी बड़ी बेइंसाफी अक्टूबर में सिनेमाघरों की करीब एक महीने तक खिंची हड़ताल के चलते भी हुई जब उन्हें ‘बधाई हो’ और ‘अंधाधुन’ जैसी फ़िल्में समय पर देखने को न मिली. स्थानीय निकायों द्वारा थोपे गए जिस मनोरंजन कर के विरोध में सिनेमाघरवाले लामबंद हुए उसका विधान सभा चुनाव की आचार संहिता के चलते रुका समाधान राज्य में कांग्रेस के सत्तारूढ़ होने पर क्या निकला यह नए साल में भी अनुत्त्तरित है.   
बहरहाल विवादों के झंझावातों में उलझी ‘पद्मावत’ से लेकर वर्षांत में ‘सिम्बा’ की सफलता के बीच बॉक्स ऑफिस ने हर हफ्ते नई फिल्मो की सफलता असफलता की ढेरों कहानियाँ लिखीं. वर्ष के प्रारंभ में ‘कालाकांडी’ और ‘मुक्काबाज़’ के औसत प्रदर्शन के बाद अक्षय कुमार की ‘पैडमेन’ और मनोज बाजपेयी की ‘अय्यारी’ भी बॉक्स ऑफिस पर कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा सकीं. बॉक्स ऑफिस पर साल की पहली बड़ी कामयाबी दर्ज कराई टाइगर श्रॉफ की ‘बागी-2’ और कार्तिक आर्यन की ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ ने. इस बीच अजय देवगन की ‘रेड’, रानी मुख़र्जी की ‘हिचकी’ और इरफ़ान खान की ‘ब्लैकमेल’ ने दर्शकों का थोड़ा बहुत ध्यान खींचा. लेकिन दर्शकों की मन पसंद फिल्मे गर्मी के मौसम में वरुण धवन की मार्मिक ‘ऑक्टोबर’ के बाद आईं.  
‘नानू की जानू’ और ‘दास देव’ के प्रति बेरुखी का भाव तोड़ा ‘102 नॉटआउट’ ने और तभी सबका दिल जीतने प्रकट हुईं आलिया भट्ट की ‘राज़ी’. प्रौढ़ावस्था के प्रेम की सहज अभिव्यक्ति ‘अंग्रेजी में कहते हैं’ को भले ही दर्शकों से ‘बधाई हो’ जैसा प्रतिसाद न मिला पर फिल्म की बुनावट वाकई दर्शनीय थी. जॉन अब्राहम की ‘परमाणु’ ने भारत के पोखरण पराक्रम की याद दिलाई. पर ‘वीरे दी वेडिंग’ अपने बोल्ड कथानक और ट्रीटमेंट के चलते अपार भीड़ खींचती चली गई. इस बीच सलमान के ‘रेस-3’ में पिछड़ने और रजनीकांत की ‘काला’ का जादू न चलने की मायूसी को दूर किया संजय दत्त की बायोपिक ‘संजू’ में रणबीर कपूर ने जो साल की सर्वाधिक कमाई करने वाली दस फिल्मो में शामिल हुई.
वर्ष के उत्तरार्ध में नवाचारी फिल्मों का बोलबाला रहा. ऋषि कपूर की ‘मुल्क’ देखने के लिये पूरा देश उमड़ पड़ा पर अनिल कपूर की ‘फन्ने खां’ दर्शकों की बाट जोहती रही. श्रीदेवी के निधन से उपजी सहानुभूति की लहर का लाभ ‘धड़क’ में जाह्नवी कपूर को मिला वहीं ‘केदारनाथ’ से सारा अली खान का बॉलीवुड में पदार्पण लव जिहाद की आड़ में भाव विभोर कर गया. खेल केन्द्रित फिल्मो के जॉनर में ‘सूरमा’ और ‘गोल्ड’ दोनों ही फिल्मे हॉकी की पृष्ठभूमि तथा कम अंतराल से प्रदर्शित होने के बावजूद सराही गईं. कमल हासन की ‘विश्वरूपम’ की तुलना में रजनीकांत की ‘2.0’ विषय की प्रासंगिकता और उन्नत तकनीक की बदौलत कई गुना अधिक सफल रही. युद्ध फिल्म के बतौर जेपी दत्ता की ‘पल्टन’ उन्ही की रची बॉर्डर को छू भी न सकी. नवाचारी फिल्मों में शरत कटारिया की ‘सुई धागा’ और श्रीनारायण सिंह की ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ उल्लेखनीय रहीं.
धर्मेन्द्र और उनके पुत्रों की ‘यमला पगला दीवाना फिर से’ की घोर असफलता इस फ्रेंचाईजी पर पूर्ण विराम लगाने के लिये मुफीद थी. सनी देओल की ‘मोहल्ला अस्सी’ और ‘भैयाजी सुपरहिट’ न घर की रही न घाट की. काजोल की ‘हेलीकॉप्टर इला’ भी ठीक से नहीं उड़ी. एक्शन फिल्मो में सत्य को जिताती ‘सत्यमेव जयते’ का जिक्र जरुरी है. साल के आखिरी दो हफ़्तों में शाहरुख़ खान की ‘ज़ीरो’ का शून्य पर सिमट जाना और ‘सिम्बा’ में दर्शकों के सर चढ़कर बोला  रणवीर सिंह का नया अवतार कहीं बॉलीवुड के बदलते ट्रेंड का पूर्वाभास तो नहीं..! वर्ष के आखिरी रविवार (30 दिसम्बर) को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित वयोवृद्ध फिल्मकार मृणाल सेन का अवसान भारतीय फिल्मोद्योग की महान क्षति है. सत्यजीत रे के बाद मृणाल सेन ही थे जिन्होंने फिल्मों को प्रयोगधर्मी कला की तरह उन्मुक्त भाव से जीया.. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक हैं)       
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