अटपटे किस्से को चटपटी कहानी में बदलने की फूहड़ कोशिश ‘दे दे प्यार दे’ / 19 मई 2019
अटपटे किस्से को चटपटी कहानी में बदलने की फूहड़ कोशिश ‘दे दे प्यार दे’ •विनोद नागर इस शुक्रवार प्रदर्शित अजय देवगण की रोमकॉम (रोमांटिक कॉमेडी फिल्म) ‘दे दे प्यार दे’ भी फिल्म के प्रचार से जगी उम्मीद की कसौटी पर खरी उतरने के बजाय निराश ही करती है। फिल्म का टाइटल अमिताभ की प्रकाश मेहरा निर्देशित आखिरी हिट फिल्म ‘शराबी’ के मशहूर गीत की याद दिलाता है। यह अलग बात है कि इस फूहड़ कॉमेडी फिल्म का उस अलबेले गीत के निहितार्थ से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। ठीक वैसे ही जिस तरह अब्बास मस्तान ने शम्मी कपूर और रफी साहब के मस्ती भरे गीत “किस को प्यार करूं” को भुनाते हुए बॉलीवुड में मंचीय मसखरे कपिल शर्मा के पैर जमाने की जुगत भिड़ाई थी। बहरहाल ‘दे दे प्यार दे’ भी मात्र एक अटपटे किस्से को चटपटी कहानी में बदलने की फूहड़ कोशिश बनकर रह गई। प्यार का पंचनामा और सोनू के टीटू की स्वीटी जैसी फिल्मों के लेखक निर्देशक लव रंजन को निर्माता के बतौर उनकी यह ताजा पेशकश 'दे दे प्यार दे' दाता के बजाय याचक की निचली पायदान पर धकेलती है। लव रंजन ने अपने सहायक रहे अकीव अली को पहली बार स्वतंत्र रूप से निर्देशन का द