आतंकी साजिश टटोलती 'ब्लैंक' और परीक्षा को ठेंगा दिखाते 'सेटर्स'/ 5 मई 2019

आतंकी साज़िश टटोलती ‘ब्लैंक’ और परीक्षा को ठेंगा दिखाते ‘सेटर्स’
• विनोद नागर
भारत में आतंकवाद से जुड़ी घटनाएँ भले ही न थमी हों पर पर इस विषय से जुड़ी फिल्में अब अपना आकर्षण खो चुकी हैं. इस विषय पर दर्शक बहुतेरी फ़िल्में देख चुके हैं. बॉलीवुड में अधिकाँश निर्माता निर्देशक नये विषयों का जोखिम उठाने के बजाय लीक पर चलने में ही अपनी भलाई समझते हैं. मनोरंजन के महासागर में हॉलीवुड के उच्च दबाव क्षेत्र में उठे तूफ़ान ‘एवेंजर्स एंडगेम’ पर बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवात ‘फ़नी’ ज्यादा भारी नहीं पड़ा. शुक्र है कि पिछले हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर आराम से पसरी ‘एवेंजर्स एंडगेम’ ने इस शुक्रवार सनी देओल की ‘ब्लैंक’ और श्रेयस तलपड़े की ‘सेटर्स’ को रिलीज़ होने के लिये रुपहले परदे पर जगह दी. वर्ना आँधी तूफ़ान में तो सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वाले भी अपने टीन टप्पर समेट लेते हैं.
लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने नरेन्द्र मोदी की बायोपिक को तो रिलीज़ नहीं होने दिया पर सनी देओल की नई फिल्म के प्रदर्शन से उसे कोई गुरेज नहीं है. ये वही ढाई किलो का हाथ है जो   लोकसभा चुनाव का आधा हिस्सा गुजरने के बाद एकाएक भाजपा के हाथ लगा जिसे वह गुरुदासपुर में आजमाने जा रही है. धर्मेन्द्र और हेमामालिनी के बाद अब देओल परिवार की अगली पीढ़ी के रूप में सनी देओल ने सक्रिय राजनीति में पहला कदम रख दिया है. एक ओर जहाँ सनी पिछले एक पखवाड़े से दिन रात चुनावी अखाड़े में पसीना बहा रहे हैं वहीं इस शुक्रवार प्रदर्शित उनकी नई फिल्म ‘ब्लैंक’ देखने गिने चुने दर्शक पहुँचने से कुर्सियों की अधिकांश कतारें ब्लैंक ही रहीं.
दरअसल आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर बनी ‘ब्लैंक’ बासी कढ़ी में उबाल का अहसास कराती है. आतंकी साज़िश को टटोलती इस फिल्म की कहानी और पटकथा प्रणव आदर्श ने लिखी है, पर नवोदित निर्देशक बहजाद खम्बाटा फिल्म के एक्शन थ्रिलर जॉनर के अनुरूप अपेक्षित रोमांचक प्रभाव रचने में विफल रहे हैं. दर्शकों को कई बार भ्रम होने लगता है कि वे फिल्म देख रहे हैं या टीवी सीरियल सीआईडी.
फिल्म की कहानी एक आत्मघाती जेहादी हनीफ (करण कपाड़िया) के आसपास घूमती है. संदिग्ध परिस्थितियों में घायल हनीफ को जब इलाज़ के लिये अस्पताल लाया जाता है तब वहां हड़कंप मच जाता है क्योंकि डॉक्टरों को उसके सीने में टाइम बम प्रत्यारोपित किया हुआ मिलता है. उसकी याददाश्त जा चुकी है इसलिये एटीएस चीफ एसएस दीवान (सनी देओल) और उनके सहयोगी रोहित (करणवीर शर्मा) के लिये इस आतंकी साज़िश का पर्दाफाश करना एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आता है. एक आतंकी संगठन हनीफ के दिल की धड़कन रुकते ही मुंबई में 24 अन्य स्थानों पर एक साथ बम धमाकों की चेतावनी देता है. इन विषम हालात से पार पाने की कहानी है ‘ब्लैंक’.
कहानी का मूल आधार दिलचस्प है लेकिन इसे सुगठित पटकथा, कुशल निर्देशन और चुस्त संपादन से ही एक रोमांचक फिल्म में ढाला जा सकता था. इन कसौटियों पर लेखक, निर्देशक और संपादक के खरा न उतरने से फिल्म अपने नाम के अनुरूप ब्लैंक साबित हुई. फिल्म में मुख्य भूमिका करण कपाड़िया ने निभाई (?) है, जो डिम्पल कपाड़िया की छोटी बहन व गुजरे ज़माने की असफल अभिनेत्री सिंपल कपाड़िया के पुत्र हैं. न उनके पास आकर्षक चेहरा मोहरा है न अभिनय की नैसर्गिक प्रतिभा. 
सनी देओल सरीखे स्थापित कलाकार की उपस्थिति भी फिल्म में कोई बड़ा योगदान नहीं कर पाती. खुद सनी की गिनती अब उन चूके हुए अदाकारों में होने लगी है जिनका समय अब जा चुका है. अतः जब एटीएस चीफ की भूमिका में वे बहुत अधिक प्रभावित नहीं करते तो ताज्जुब नहीं होता. चूँकि सनी से इतर फिल्म में कोई और स्टार वैल्यू रखी ही नहीं गई इसलिये बॉक्स ऑफिस पर इसे औंधे मुँह गिरने से रोकने वाला कोई और हाथ नज़र नहीं आता. कमला पसंद के विज्ञापनों में दिखाई देने वाले करणवीर शर्मा कमोबेश कुछ असर छोड़ते हैं लेकिन इशिता दत्ता, ज़मील खान सहित अन्य कलाकार निराश करते हैं. फिल्म में अक्षय कुमार का पैबंदनुमा केमियो ‘अली अली’ महज रिश्तेदारी निभाता मालूम पड़ता है. फिल्म का गीत संगीत (यहाँ तक कि पार्श्व संगीत भी) ऊब पैदा करता है.
इधर इसी शुक्रवार प्रदर्शित निर्देशक अश्विनी चौधरी की ‘सेटर्स’ पिछले दिनों आई इमरान हाशमी की ‘व्हाय चीट इंडिया’ की याद दिलाती है. परीक्षा पास कराने की ठेकेदारी और नक़लपट्टी के गोरखधंधे का दिलचस्प खुलासा करती यह हिन्दी फिल्म भी अंग्रेजी टाइटल के मोह की भेंट चढ़  गई. दरअसल बोलचाल की भाषा में प्रचलित सेटिंग शब्द के आशय से काफी लोग परिचित हैं पर ‘सेटर्स’ शब्द से हिन्दी में उसका वास्तविक भावार्थ प्रतिध्वनित नहीं होता; बस यहीं फिल्म मात खा गयी. ऊपर से निर्माताओं ने ‘सेटर्स’ का यथोचित प्रचार भी नहीं किया. अन्यथा कम से कम एकल सिनेमाघरों में तो दर्शकों को कम बजट की एक सामयिक फिल्म आसानी से देखने को मिल जाती.
हालाँकि ‘सेटर्स’ पढाई में कमजोर विद्यार्थियों के अभिभावकों से धन ऐंठकर फर्जी तरीकों से परीक्षा में पास कराने वाले गिरोहों का पर्दाफ़ाश बनारस, जयपुर, मुंबई और दिल्ली के परिवेश में करती है लेकिन इसे देखते हुए मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले की याद स्वाभाविक रूप से आती है. फिल्म में श्रेयस तलपड़े, आफताब शिवदासानी और सोनाली सैगल के अलावा महेश मांजरेकर, विजय राज, शरत सक्सेना, पवन मल्होत्रा, पंकज झा, नीरज सूद, मनु ऋषि जैसे सिद्धहस्त कलाकारों द्वारा निभाए गए किरदार फिल्म और उसके गंभीर विषय के साथ हल्के फुल्के अंदाज़ में पूरा न्याय करते हैं.
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