ढूंढें से भी न मिले सच्चे स्टूडेंट ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2’ में / 12 मई 2019


सिने विमर्श   
  
ढूंढें से भी न मिले सच्चे स्टूडेंट ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2’ में   

·        विनोद नागर

सत्तर के दशक की कई हिन्दी फिल्मों में छात्र जीवन का वास्तविक चित्रण उभरकर सामने आया था. मेरे अपने, इम्तिहान, आन्दोलन, जवानी दीवानी, अंखियों के झरोखों से, बुलंदी जैसी फिल्मों से   आज भी लोग अपने छात्र जीवन को कनेक्ट करते हैं. कालान्तर में जो जीता वही सिकंदर, कुछ कुछ होता है, दिल चाहता है, रंग दे बसंती, युवा, थ्री इडियट्स, मैं हूँ ना, रॉक ऑन, वेक अप सिड, फुकरे, फ़ालतू, यारियां, इश्क विश्क सरीखी फिल्मों ने सिनेमा के परदे पर स्टूडेंट लाइफ की बदलती तस्वीर पेश की. इनमे से कुछ फिल्मों को उनके बेहतर कथानक और सामाजिक सरोकारों से सीधे जुड़ाव के चलते व्यापक सराहना भी मिली और अवार्ड भी.            
2012 में करण जौहर ने अपने बैनर धर्मा के लिये पहली बार ऐसी फिल्म निर्देशित की जिसमे उनके प्रिय शाहरुख़ खान नहीं थे. स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर ने वरुण धवन, आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे नवोदित कलाकारों के कैरियर को सीधे सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. राधा जैसा  लोकप्रिय गीत युवाओं को इस कदर भाया कि स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर बॉक्स ऑफिस पर वर्ष की सर्वाधिक कमाई का इतिहास रच गयी. सात बरस बाद भी करण जौहर पर स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर की कामयाबी का सुरूर छाया हुआ है.
इस शुक्रवार प्रदर्शित स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2 सात वर्ष पहले इसी नाम से आई फिल्म का सीक्वल है. ऐसा लगता है हड़बड़ाहट में उन्होंने तवे पर गर्म की जाने वाली बासी रोटी की तरह स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर को बस उलट पलट भर दिया है. इसकी गवाही दोनों फिल्मों के पोस्टर की समानता देती है. प्रीक्वल के पोस्टर में नायिका दोनों नायकों के बीच थी जबकि सीक्वल के पोस्टर में नायक केंद्र में व दोनों नायिकाएँ आजू बाजू हैं. पहली कड़ी में वरुण धवन के किरदार का नाम रोहन था तो दूसरी कड़ी में टाइगर श्रॉफ अभिनीत पात्र भी रोहन ही है. अलबत्ता विशाल शेखर की जोड़ी ने दोनों ही फिल्मों में गानों की मस्ती बरकरार रखने की कोशिश की है.  
   पता नहीं करण जौहर ने स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर की दूसरी कड़ी का निर्देशके दायित्व कभी ख़ुशी कभी गम में सहायक निर्देशक रहे पुनीत मल्होत्रा को क्यों सौंपा. जबकि आई हेट लव स्टोरीज तथा गोरी तेरे प्यार में ने कोई कमाल नहीं किया था. निर्देशक के बतौर यह पुनीत की तीसरी फिल्म है. किसी भी फिल्म के सीक्वल की प्रीक्वल से तुलना स्वाभाविक है. इस लिहाज से कहानी और पटकथा में अपेक्षित परिष्कार के अभाव में स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर-2 अपनी पूर्ववर्ती फिल्म का करिश्मा दोहराने में नितांत असफल रही है.
फिल्म की कहानी देहरादून एवं मसूरी के कुलीन और मध्यमवर्गीय कॉलेज छात्रों में स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर ट्रॉफी को लेकर होने वाली जद्दोजहद के इर्द गिर्द बुनी गई है. पिशोरीलाल कॉलेज के होनहार छात्र रोहन सहगल (टाइगर श्रॉफ) को स्पोर्ट्स स्कालरशिप के जरिये उसी सेंट टेरेसा कॉलेज में प्रवेश मिल जाता है जहाँ उसकी बचपन की दोस्त मृदुला चावला (तारा सुतारिया) डांसर बनने का सपना लिये पढ़ रही है. कॉलेज में रोहन की मुलाक़ात संस्था के रसूखदार ट्रस्टी रंधावा (चेतन पंडित) के फैशन परस्त मगरूर बच्चों मानव (आदित्य सील) और श्रेया (अनन्या पाण्डे) से होती है. प्यार और तकरार से उपजी दोस्ती के प्रेम त्रिकोण में बदलते ही कहानी में ट्विस्ट आता है और रोहन को कॉलेज से निकाल दिया जाता है. हताश रोहन दुबारा  अपने पुराने कॉलेज में जाता है, जहाँ एक हाथ में गर्ल फ्रेंड और दूसरे हाथ में स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर ट्रॉफी पाना उसका लक्ष्य रह जाता है.
टाइगर श्रॉफ पूरी फिल्म में अपना कसरती बदन और पथराया चेहरा लिये घूमते हैं. लगता है अभिनय उनके बस का नहीं पर सुशांत राजपूत से वे यह गुर सीख सकते हैं. नवोदित नायिकाओं तारा सुतारिया और चंकी पाण्डे की बेटी अनन्या पाण्डे ने पूरी फिल्म में अपनी उघड़ी टांगों और फैशनेबल वस्त्रों का ही प्रदर्शन किया है. चेतन पंडित और ‘मुल्क’ में अपने अभिनय सामर्थ्य का परिचय दे चुके मनोज पाहवा जैसे समर्थ कलाकारों को अब ऐसे वाहियात रोल स्वीकार नहीं करने चाहिए. विल स्मिथ और आलिया भट्ट की संक्षिप्त उपस्थिति नाम मात्र की है.
फिल्म में स्टूडेंट्स की पढाई लिखाई से ज्यादा उनके फैशनेबल कपड़ों, ऐटीट्यूड पर ध्यान केन्द्रित किया गया है. निर्देशक ने गुस्सैल श्रेया द्वारा रोहन की साइकिल को पिंक कलर में रंगने, कॉलेज के गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मी से दाढ़ी मुंडाकर सेल्फी लेने की शर्त, बोरियां उठाकर ट्रेक्टर के टायर पलट कर कबड्डी की तैयारी करते खिलाड़ी, फिल्म में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं को मात देने वाले अंदाज़ में कॉलेज स्तरीय एथेलेटिक्स / कबड्डी मुकाबलों का फिल्मांकन कर अपनी अपरिपक्वता का परिचय दिया है.
फिल्म के सारे गीतों में से केवल फकीरा गीत का फिल्मांकन ही राहत देता है. पुनर्रचित ये जवानी है दीवानी गीत के चकाचौंध भरे सेट में रणधीर कपूर वाली चुलबुली उर्जा नदारद है. दिन तेरा था साल मेरा होगा.. की तरह बाकी संवाद भी दमदार नहीं हैं- आँखें ही बंद हों तो अँधेरे को गाली क्या देना.. दुनिया देखने के बजाय मैं चाहती हूँ दुनिया मुझे देखे.. हारना मेरे ईगो के लिये ठीक नहीं है.. बात अब अकल और औकात की नहीं इज्जत की है.. तुम लड़की हो या शटल कॉक.. लड़कियों को रिस्पेक्ट  देना चाहिए वर्ना लाइन तो बिजली वाले भी देते हैं..
पब्लिक और रिपब्लिक शब्द के निहितार्थ में भले ही जनता समान रूप से जुड़ी हो; पर पब्लिक स्कूल और पब्लिक के स्कूल में बड़ा भारी अंतर है. पंचगनी से दून स्कूल और शेरवुड से लेकर डेली कॉलेज तक हर जगह नदी के दो किनारे आपस में कहीं नहीं मिलते. लेकिन करण जौहर और उनकी फिल्मों की माया अपरम्पार है, जो शब्दों के मनचाहे भावार्थ और बेतुकी परिभाषाएं गढ़ने में माहिर हैं. जिस तबके को हिंदी में बात तक करने में हेठी नज़र आती है उसे रुपहले परदे पर कबड्डी जैसा देसी खेल खेलते देखना अटपटा लगता है. देहरादून में वर्षों तक आकाशवाणी संवाददाता रहे लेखक मित्र प्रकाश थपलियाल जब चमौली से लौटेंगे तो पूछूंगा कि क्या तुम्हारे देहरादून मसूरी में वाकई पिशोरीलाल और सेंट टेरेसा जैसे कॉलेजों में स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर चुनने के लिये दौड़ और कबड्डी के मुकाबले होते हैं क्या..?  
 प्राचीन काल में हमारे देश में गुरुकुल आधारित गुरु शिष्य परंपरा आधुनिक युग के शैक्षिक परिदृश्य से सर्वथा भिन्न थी. क्षिप्रा किनारे सान्दिपनी आश्रम को सहेजे अवंतिका नगरी (जिसे कृष्ण सुदामा की शिक्षा स्थली होने पर गर्व है) का शैक्षिक सफ़र भी महाराजवाड़ा, माधव कॉलेज और विक्रम विश्वविद्यालय से गुजरते हुए कैम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड तक पहुँच चुका है. 1968-78 के दशक में विक्रम विवि के कुलपति के रूप में सुमनजी द्वारा हस्ताक्षरित डिग्री पाने वाला एक दर्जन जिलों का तत्कालीन छात्र वर्ग अब बुजुर्ग हो चला है. ऐनक चढ़ी आँखों से अपने घर परिवार की तीसरी पीढ़ी की स्टूडेंट लाइफ विरक्ति भाव से देख रहे इन अनुभवी लोगों से भी एक सवाल है कि आखिर स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर का खिताब पाने का सही हक़दार कौन होता है..? पढाई लिखी में तन्मयता से मेहनत व लगन के बल पर अव्वल आने वाले विद्यार्थी या करण जौहर की फिल्मों में दिखाए जाने वाले नाचते गाते, खेलते कूदते, ऐश करते मनमौजी युवा..!                             
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